Articles Search

Title

Category

Wednesday, 24 May 2017 12:30

Title

Category

संदीप कुमार मिश्र : दोस्तों कहते हैं धर्म,अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ती के लिए भगवान को भी धरती पर अवतार लेना पड़ा,चलिए आपको धर्म यात्रा के एक ऐसे पड़ाव और ऐसी जगह लेकर चलते हैं,जिनका नाम लेते ही मन चंचल हो उठता है,जिसकी लीलाओं के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ जाती है...ठीक समझे आप,हमा बात कर रहे हैं मथुरा के गोवर्धन पर्वत की। उसी गोवर्धन पर्वत की जो श्याम सलोनें कृष्ण की लीलाओं के साक्षी हैं,यानि कि गिरिराज पर्वत।

मित्रों उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले का गोवर्धन एक एसा स्थान है,जिसके प्रति लोगो में अपार श्रद्धा है।मथुरा के पवित्र गोवर्धन क्षेत्र में ही स्थित है श्रीगिरिराज जी महाराज दानधाटी मंदिर जो एक पवित्र और रमणीक स्थल है।कहते हैं श्रद्धालू ब्रज की परिक्रमा की शुरूआत गिरिराज महाराज के इस मंदिर मे दर्शन करने के बाद ही शुरू करते है। श्रीगिरिराज जी महाराज,दानधाटीमंदिर, गोवर्धन,मथुरा।मथुरा के आस पास के चौरासी कोस का क्षेत्र ब्रज भूमि कहलाता है।ब्रज भूमि का कोना कोना श्रीकृष्ण की लीलाओं का साक्षी होने के कारण पवित्र और पूजनीय माना जाता है।श्रीगिरिराजजी के इस मंदिर में श्रद्धालू दर्शन करने के बाद परिक्रमा लगाना शुरू करते हैं।बेहद खूबसूरत और सुन्दर तरीके से बना ये मंदिर बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है।इस मंदिर के बारे में भी अनेंकों कथाऐं प्रचलीत हैं।कहते हैं यही वो जगह है जहां माखनचोर श्रीकृष्ण गोपियों को रोककर उनका माखन खाया करते थे।

इस मंदिर की शोभा और भव्यता देखते ही बनती हैं।विराट और आकर्षक दिखने वाले इस मंदिर की नक्कासी भी अद्बुत और अनुठी है।मंदिर के बीच वाले गुम्बद पर एक मनोहारी झांकी बनाई गई है।जिसमें भगवान श्रीकृष्ण एक हाथ में गोवर्धन पर्वत और दूसरे हाथ में बंसी बजाते हुए खड़े हैं और साथ में सभी ग्वालबाल गऊवों के साथ पूरा ब्रजमंडल खडा दिखाई दे रहा है।श्याम सलोने श्रीकृष्ण की ये झांकी श्रीगिरिराज मंदिर की शोभा को और भी बढ़ा देती है।

ये मंदिर मुख्य रूप से श्रीगिरिराज जी महाराज को समर्पीत है लेकिन मंदिर में अन्य देवी देवताओं की भी भव्य झांकियां और मूर्तियां हैं।मंदिर परिसर में श्रीकृष्ण के जन्म की भी बेहद सुन्दर झांकी बनी हुई है।इस मंदिर में शाम होते ही गिरिराज महाराज की भव्य आरती होती है।जिसमें सैकड़ों की संख्या में भक्त शरीक होते हैं और इस मनमोहक आरती का आनंद लेते हैं।इस आरती में शामिल होकर श्रद्धालु आत्मिक शांती का अनुभव करते हैं,और पूण्य लाभ प्राप्त करते हैं।आरती के गूंजते स्वर और घंटीयों की आवाज़ वातावरण को दिव्य बना देती है।

मित्रों गिरिराज जी महाराज को दूध, दही, मक्खन बहुत प्रिय है,इसलिए इन्हें दूध से बनी वस्तुए अर्पीत की जाती हैं।शाम को मंदिर की छटा देखते ही बनती है।ऐसा लगता है मानों ज्ञान रूपी प्रकाश सभी दिशाओं में फैल रहा है।धन्य हैं श्याम सलोनें और धन्य है उनके लीलाओं की नगरी मथुरा और उसका ब्रज क्षेत्र। 

गोवर्धन गिरिराज पर्वत जो की 21 किमी में फैला हुआ है।कहीं समतल तो कहीं ऊंचाईयां गिरिराज पर्वत की देखते ही बनती है।इस पर्वत के बारे में अनेंको कथाए प्रचलित हैं।गर्ग सहिंता में गोवर्धन पर्वत को द्रोनाचल पर्वत का पुत्र कहा गया है। गोवर्धन के मनोहारी रूप को देखकर एक बार पुलस्त्य ऋषि मोहित हो गये और उन्होंने द्रोनाचल से गोवर्धन को काशी ले जाने की इच्छा व्यक्त की और बोले मै अपने तपोबल से इस पर्वत को सूक्ष्म रूप प्रदान करूंगा उसके बाद इसे हथेली पर उठाकर काशी ले जाऊंगा।.ऋषि का मान रखने के लिए गोवर्धन ने अपनी स्वीकृति दे दी लेकिन साथ ही एक शर्त भी रख दी की रास्ते में यदि आप मुझे कहीं रख देंगे तो फिर मैं वहां से नही उठूंगा।ऋषिवर ने गोवर्धन पर्वत की वह शर्त मान ली।उन्होंने अपने योगबल से पर्वत को लघु रूप प्रदान कर दिया और काशी की ओर चल पड़े।ब्रिज मंडल आने पर ऋषि ने पर्वत को लघु शंका लगने के कारण वहीं रख दिए और अपनी शर्त भूल गए।काफी प्रयास करने के बाद भी जब पर्वत नहीं उठा,तब ऋषिवर क्रोधित हो गये और पर्वत को शाप दे दिया की तुम्हारी ऊंचाई रोज़ एक तिल के बराबर घटेगी।तुम तिल तिल कर के जमीन में धंसते चले जाओगे।एक दिन तुम अद्रश्य हो जाओगे।इसी शाप के कारण गोवर्धन पर्वत तिल तिल कर के घट रहा है।कहते है गोवर्धन पर्वत पहले काफी ऊंचा था,इसकी ऊंचाई मथुरा में बहती यमुना पर पड़ती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है।

गिरिराज मंदिर के विषय में एक और पौराणिक मान्यता है कि श्री गिरिराज को हनुमान जी उत्तराखंड से ला रहे थे उसी समय एक आकाशवाणी सुनकर वे पर्वत को ब्रज में स्थापित कर देते हैं और भगवान श्री राम के पास लौट जाते हैं।आदि वाराह पुराण के अनुसार,त्रेतायुग में जब भगवान् श्री रामचन्द्रजी समुद्र पर सेतू का निर्माण करवा रहे थे,उस समय हनुमान जी गोवर्धन पर्वत को उठा कर सेतू निर्माण के लिए ला रहे थे।तभी महाबली को आकाशवाणी सुनाई दी कि समुद्र पर सेतू बन गया है।अब शिलाओं की जरुरत नहीं है।इतना सुनते ही हनुमान जी ने पर्वत को वहीं रख दिया। इससे दुखी होकर गोवर्धन ने कहा की आपने मुझे श्री राम के चरण स्पर्श करने के सौभाग्य से वंचित कर दिया अब मेरा क्या होगा।हनुमान जी ने गोवर्धन जी को आश्वासन दिया कि द्वापर युग में श्री कृष्ण अवतार की लीलाओ में आपको स्थान मिलेगा और बाद में यह सच साबित हुआ।जैसा कि हिन्दु धर्मग्रंथो में लिखा गया है।

मथुरा और वृ्न्दावन में भगवान श्री कृ्ष्ण से जुडे अनेकों धार्मिक स्थल है,किसी एक का स्मरण करों तो दूसरे का ध्यान स्वत: ही आ जाता है।मथुरा के इन्हीं मुख्य धार्मिक स्थलों में गिरिराज धाम का नाम आता है।सभी प्राचीन शास्त्रों में गोवर्धन पर्वत का वर्णन किया गया है।गोवर्धन के मह्त्व का वर्णन करते हुए कहा गया है कि गोवर्धन पर्वत गोकुल पर मुकुट में जडित मणि के समान चमकता रहता है।गोवर्धन धाम से जुडी एक अन्य कथा के अनुसार गोकुल में इन्द्र देव की पूजा के स्थान पर गौ और प्रकृ्ति की पूजा का संदेश देने के लिये इस पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण ने अंगूली पर उठा लिया था। कहते हैं भगवान श्री कृष्ण ने इन्द्र की परम्परागत पूजा बन्द कर ब्रज में गोवर्धन की पूजा की शुरूआत की थी।ब्रज में प्रत्येक वर्ष इन्द्र देव की पूजा का प्रचलन था। इस पूजा पर ब्रज के लोग अत्यधिक व्यय करते थे जो वहां के निवासियों के सामर्थ्य से कहीं अधिक होता था।यह देख कर भगनान श्रीकृ्ष्ण ने सभी गांव वालों से कहा कि इन्द्र की पूजा के स्थान पर जो वस्तुएं हमें जीवन देती है,भोजन देती है,हमें उन वस्तुओं की पूजा करनी चाहिए। 

भगवान श्रीकृ्ष्ण की बात मानकर ब्रज के लोगों ने उस वर्ष इन्द्र देव की पूजा करने के स्थान पर अपनें पालतु पशुओ, सुर्य, वायु, जल और खेती के साधनों की पूजा की ।इस बात से इन्द्र देव नाराज हो गए और नाराज होकर उन्होनें ब्रज में भयंकर वर्षा की।इससे सारा ब्रजमंडल जलमग्न हो गया।जिसके बाद सभी ब्रजवासी भगवान श्रीकृ्ष्ण के पास आये और इस प्रकोप से बचने की प्रार्थना की। भगवान श्री कृ्ष्ण ने उस समय गोवर्धन पर्वत अपनी अंगूली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की।उसी दिन से गिरिराज धाम की पूजा और परिक्रमा करने का विशेष पुण्य की प्राप्ति होने की बात कही जाती है।इस प्रकार से गिरिराज जी को भगवान के दर्शन भी हो जाते हैं और पवन पुत्र हनुमान जी के वचन भी पूरे हो जाते हैं। 

कहते हैं गिरिराज महाराज के दर्शन कलयुग में सतयुग के दर्शन करने के समान सुख देते है।यहां अनेक शिलाएं है,उन शिलाओं का प्रत्येक खास अवसर पर श्रंगार किया जाता है।करोडों श्रद्वालु यहां इस श्रृंगार और गोवर्धन के दर्शनों के लिये आते है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कर पूजा करने से मांगी हुई मन्नतें पूरी होती है,जो व्यक्ति 11 एकादशियों को नियमित रुप से गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करता है,इनके दर्शन करता है।उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।  यहां के एक चबूतरे पर विराजमान गिरिराज महाराज की शिला बेहद दर्शनीय है।इसके दर्शनों के लिये भारी संख्या में श्रद्वालू जुटते है।महाराज गिरिराज की शिला को अधिक से अधिक सजाने की यहां श्रद्वालुओं में होड रहती है।भक्त इस शिला पर दुध चढ़ाते हैं,और अपनी उन्नती ,प्रगती की मंगल कामना करते हैं।

एक तरफ जहां ब्रज में गोवर्धन पूजा की धूम मची रहती है तो वहीं गिरिराज महाराज को दूध का अर्घ्य  दिया जाता है।जिसके लिए भक्तों का विशाल जनसमुह हर दिन यहां दर्शन के लिए आता है।ब्रज मे आकर श्रद्धालू दण्डौती परिक्रमा करते हैं।दण्डौती परिक्रमा इस प्रकार की जाती है कि आगे हाथ फैलाकर जमीन पर भक्त लेट जाते हैं और जहां तक हाथ फैलता हैं,वहां तक लकीर खींचकर फिर उसके आगे लेटते हैं।इसी प्रकार लेटते-लेटते या साष्टांग दण्डवत्‌ करते-करते परिक्रमा करते हैं जो एक सप्ताह से लेकर दो सप्ताह में पूरी हो पाती है।7 कोस की परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की होती है।परिक्रमा जहां से शुरु होती है,वहीं पर एक प्रसिद्ध मंदिर भी है।राधाकुण्ड से तीन मील पर गोवर्द्धन पर्वत है जो भी दर्शनार्थी यहां आते हैं वो राधाकुण्ड में स्नान करना नहीं भुलते।कहते हैं जिस तरह से भी आप यहां आकर पूजा करें,भगवान श्री कृष्ण खुश हो जाते हैं।भगवान श्री कृष्ण खुद आकर आपकी अराधना,पूजा को स्वीकार करते हैं।मित्रों संसार में श्रीकृ्ष्ण की उपासना अन्य देवों की तुलना में सबसे अधिक की जाती है।श्रीकृष्ण के विषय में यह मान्यता है कि ईश्वर के सभी तत्व एक ही अवतार अर्थात भगवान श्री कृष्ण में समाहित है।गिरिराज महाराज को भगवान श्रीकृ्ष्ण के जन्म उत्सव के अलावा अन्य मुख्य अवसरों पर 56 भोग का नैवेद्ध अर्पित किया जाता है।

गोवर्धन के महत्व की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना यह है कि यह भगवान कृष्ण के काल का एक मात्र स्थिर रहने वाला चिन्ह है।उस काल का दूसरा चिन्ह यमुना नदी भी है।लेकिन उसका प्रवाह लगातार परिवर्तित होने से उसे स्थाई चिन्ह नहीं कहा जा सकता है।वैष्णव जन गोवर्धन को भगवान् श्री कृष्ण का ही एक स्वरूप मान कर पूजा अर्चना करते है।यदि भक्त श्रद्धा भाव से पर्वत की परिक्रमा करें तो कहते हैं कि उनके सभी मनोरथ पूरे हो जाते है।

जी हां दोस्तों गिरिराज महाराज ही एक ऐसे देवता हैं जो हमें श्रीकृष्ण की लीलाओं की याद दिलाते हैं और ब्रज भुमि को विश्वभर में एक दर्शनीय स्थान के साथ एक रमणीक स्थल का स्वरूप प्रदान करते हैं।धन्य हैं गोवर्धन गिरिराज महराज।

गोवर्धन पर्वत,भगवान श्रीकृष्ण,साक्षी,संदीप कुमार मिश्र,धर्म,अर्थ,मोक्ष ,धरती,अवतार,चंचल,गिरिराज पर्वत,श्याम सलोनें,मथुरा,ब्रज भूमि,परिक्रमा,मंदिर,

 

To subscribe click this link – 

https://www.youtube.com/channel/UCDWLdRzsReu7x0rubH8XZXg?sub_confirmation=1

If You like the video don't forget to share with others & also share your views

Google Plus :  https://plus.google.com/u/0/+totalbhakti

Facebook :  https://www.facebook.com/totalbhaktiportal/

Twitter  :  https://twitter.com/totalbhakti/

Linkedin :  https://www.linkedin.com/in/totalbhakti-com-78780631/

Dailymotion - http://www.dailymotion.com/totalbhakti

 

Read 39582 times

Ratings & Reviews

Rate this item
(0 votes)

Leave a comment

Make sure you enter all the required information, indicated by an asterisk (*). HTML code is not allowed.

Wallpapers

Here are some exciting "Hindu" religious wallpapers for your computer. We have listed the wallpapers in various categories to suit your interest and faith. All the wallpapers are free to download. Just Right click on any of the pictures, save the image on your computer, and can set it as your desktop background... Enjoy & share.