संदीप कुमार मिश्र : मां इस धरा पर उस कल्प वृक्ष के समान है जो हर परिस्थिति में अपने बच्चों की सुरक्षा और हिफाजत ही चाहती है।जैसे वृक्ष हमें बरसात ,आंधी , गर्मी की तपिश से निजात दिलवाते है। उसी तरह मां भी उस वृक्ष के सामान है जो हमें जिन्दगी में आने वाले दुखों से हमेशा हमारी सुरक्षा करती हैं।मां की शितल छाया का सुख हर कोई पाना चाहता है।मां की महिमा का गुणगान जितना ही किया जाए उतना ही कम है। मां,एक ऐसा शब्द,एक एसा नाम जिसके आंचल मे हर कोई समाना चाहता है।यहां तक कि भगवान भी इस सुख को पाने के ललायित रहते थे।जिसका परिणाम है कि कभी राम रूप में तो कभी कृष्ण रूप में धरती पर अवतार लिए।हर दुख सहती हैं मां अपने बच्चों को कभी भी अपनें तकलिफों और परेशानीयों का अहसास नहीं होने देती है मां।
मां तो मां है। जिसका कर्ज हम ताउम्र नहीं चूका सकते।अपने बच्चों को दुख में देख कर जो पलभर में हो जाती है परेशान वो पावन नाम है मां।हर प्रकार के सुख दुख सहकर और न जाने अपने कितने ही सुखों का त्याग करती हैं मां अपने बच्चों के लिए।खासकर एसी ही होती हैं भारतीय मां अपने बच्चों के लिए।जिनके जुबान से हमेशा ही दुआएं निकलती है अपने बच्चों की खुशहाली , उन्नति, और अच्छे सौभाग्य के लिए।
इन्हीं दुआओं और आशीर्वाद का प्रतीक है, अहोई अष्टमी का व्रत।जिसे हर मां अपने बेटों की लम्बी आयु के लिए रखती हैं।ये व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है।दीपावली से ठीक एक हफ्ता पहले अष्टमी का व्रत होता है।शास्त्रों के अनुसार जिस वार को दीपावली होती है।उसी वार को अहोई अष्टमी का व्रत होता है।जो दीपावली से एक हफ्ता पहले होता है।कहते हैं कि अहोई अष्टमी के दिन से ही दीपावली का शुभारम्भ हो जाता है। पुत्रवती महिलाएं तो इस व्रत को रखती ही हैं साथ ही वो औरतें भी इस व्रत को रखती हैं,जिनके घर कोई औलाद नहीं होती।
महिलाएं इस दिन अपने बेटे की लम्बी आयू के लिए अहोई माता का व्रत रखती हैं और साथ ही माताएं अपने बेटों के लिए मांगती हैं उत्तम विकास और आरोग्यता के लिए देवी मां से वरदान।
अहोई माता की कथा
अहोई माता के संबंध में ऐसे तो कई कथाएं कही जाती हैं लेकिन सबसे प्रसिद्ध कथा है कि “एक साहूकार अपनी पत्नी चन्द्रिका,जो बड़ी गुणवती थी और अपनें दोनों बेटों के पूरा परिवार के साथ सुखी जीवन बिता रहा था।एक दिन साहूकार की पत्नी दीपावली के त्योहार को नजदीक आता देखकर घर को लीपने पोतने के लिए मिट्टी लेने गई। इस दौरान जब वो कुदाल से मिट्टी खोद रही होती है तो सेई के बच्चे मर जाते हैं। वो ऐसा जान बूझ कर नहीं करती,बल्कि ये होता है अनजाने में।इससे वो काफी आहत होती है और व्याकुल होकर घर लौट आती है।लेकिन कुछ दिनों बाद उसकी औलादों की एक एक करके मौत होने लगती है।अपने बच्चों की अचानक हुई मौत से साहूकार और उसकी पत्नी ये सोचकर परेशान होतें हैं कि उन्होंने आज तक कोई ऐसा पाप नहीं किया, फिर भगवान क्यों उन्हें ये सजा दे रहें हैं।साहूकार की पत्नी अपने बच्चों की मौत पर विलाप करती हुई कहती है कि उसने आज तक जान बूझ कर कोई पाप नहीं किया।हां एक बार अनजाने में उससे सेह के बच्चे मारे गए थे।ये बात सुनकर सभी औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए अष्टमी माता की पूजा करने को कहा। औरतों के कहने पर साहूकार की पत्नी ने सेह और उसके बच्चों का चित्र बनाकर अहोई माता की पूजा की और मां से हुए अपराध के लिए क्षमा याचना मांगी।तब देवी मां ने प्रसन्न होकर उसकी होने वाली औलाद को दीर्घ आयु का वरदान दिया।उसी समय से अहोई व्रत की ये परम्परा शुरू हो गई और तब से लेकर अब तक महिलाएं अपने बेटों की लम्बी आयु के लिए अहोई व्रत रखती आ रहीं हैं।
अहोई माता की पूजा का समय
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त = १७:५० से १९:०६
अवधि = १ घण्टा १५ मिनट्स
तारों को देखने के लिये साँझ का समय = १८:१८
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय = २३:५३
अष्टमी तिथि प्रारम्भ = १२/अक्टूबर/२०१७ को ०६:५५ बजे
अष्टमी तिथि समाप्त = १३/अक्टूबर/२०१७ को ०४:५९ बजे
पहले औरतें अहोई माता का चित्र खुद ही बनाती थी। ये चित्र रूई या गेहूं के दानों से ,नीम के पत्तों को पीस कर, मिट्टी के साथ चावलों को पीस कर हल्दी मिलाई जाती थी,इसे रोला कहते थे।ये एक तरह का रंग होता था।इस चित्र में अहोई माता, सेई माता और उसके बच्चों के चित्र बनाए जाते थे। लेकिन बदलते वक्त के साथ अब तो अहोई माता का चित्र बनाने की बजाए बाजार से अहोई माता का कैलेंडर या बनी बनाई मूर्ति लाई जाती हैं। खैर जो भी हो,आधुनिकता का रंग चढने के बाद भी हम परम्पराओं और मर्यादाओं की सीमा में बंधे हुए हैं और यही हमारे देश की पहचान है।माता अहोई आप सब की मनोंकामनाओं को पूरा करें।जय अहोई माता।
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