हम सभी जानते हैं कि लंकापति रावण प्रकांड पंडित था।जिसने अपनी रक्षा के लिए शिवतांडव स्तोत्र का निर्माण किया था।कहते हैं कि शिवतांडव स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करने से मनुष्य को सभी प्रकार की सिद्धि प्राप्त हो जाती है और साधक सहज ही भगवान शिव की कृपा का पात्र बन जाता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिव तांडव स्त्रोत का निर्माण कैसे और किन परिस्थितियों में हुआ।आईए जानते है-
दरअसल कुबेर और रावण दोनों ही महान ऋषि विश्रवा के पुत्र थे लैकिन दोनो सौतेले भाई थे। ऐसा हमारे धर्म शास्त्रों में लिका गया है कि ऋषि विश्रवा ने सोने से निर्मित लंका का राज्य अपने एक पुत्र कुबेर को दे दिया लेकिन किन्हीं कारणवश अपने पिता के कहने पर वे लंका छोड़कर कर हिमाचल की ओर प्रस्तान कर गये।जिसके बाद दशानन रावण लंका का राजा बन गया।राजा बनते ही रावण अहंकारी बन गया और संतजनो पर अत्याचार करने लगा।
कुबेर को जब दशानन के अत्याचारों का पता चला तो उन्होने भाई को समढाने के लिए एक दूत भेजा और रावण को सत्य की राह पर चलने की सलाह दी।इस बात से क्रोधित होकर रावण ने दूत को बंदी बना लिया और क्रोध में तुरंत अपनी तलवार से दूत की हत्या कर दी।इतना ही नहीं सेना सहित कुबेर की नगरी अलकापुरी को जीतने के लिए निकल पड़ा और अलकापुरी को तहस-नहस कर डाला, अपने भाई कुबेर को भी गदा के प्रहार से घायल कर दिया। लेकिन कुबेर के सेनापतियों ने किसी तरह से कुबेर को नंदनवन पहुँचा दिया।
इतना ही नहीं रावण ने कुबेर की नगरी अलकापुरी और उसके पुष्पक विमान पर भी कब्जा कर लिया।एक कथानुसार जब जब रावण पुष्पक विमान पर सवार होकर शारवन की तरफ जा रहा था तभी एक पर्वत के पास से गुजरते हुए पुष्पक विमान की गति यकायक धीमी हो गई। पुष्पक विमान के संबंध में कहा जाता है कि वह चालक की इच्छानुसार चलता था और उसकी गति मन की गति से भी तेज थी, इसलिए जब पुष्पक विमान की गति मंद हो गर्इ तो लंकापति रावण को बडा आश्चर्य हुआ।इसी उहापोह में उसकी दृष्टि जब सामने खडे विशालकाय काले शरीर वाले नंदीश्वर पर पडी जो दशानन रावण को सचेत करते हुए कहने लगे कि-
“ यहां प्रभु देवों के देव महादेव क्रीड़ा में मग्न हैं इसलिए तुम लौट जाओ”, लेकिन लंकापति रावण कुबेर पर विजय के पश्चात इतना अभिमानी,दंभी हो गया था कि वो किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था।अपने इसी दंभवश रावण ने कहा कि – “कौन है ये शंकर और किस अधिकार से वह यहाँ क्रीड़ा करता है? मैं उस पर्वत का नामो-निशान ही मिटा दूँगा, जिसने मेरे विमान की गति अवरूद्ध की है”। ये कहते हुए रावण पर्वत को उठाने लगा। अचानक इस विघ्न से भगवान शंकर विचलित हुए और वहीं बैठे-बैठे अपने पाँव के अंगूठे से उस पर्वत को दबा दिया जिससे कि वो स्थिर हो जाए।भोलेनाथ के ऐसा करनो की देरी भर थी कि दशानन रावण की बांहें उस पर्वत के नीचे दब गई।जिसका परिणाम हुआ कि क्रोध और भयंकर पीडा से रावण कराह उठा,उसकी पीड़ा और चित्कार इतनी भयंकर थी कि लगा मानो प्रलय आ जाएगा।
रावण की भयंकर पीड़ा और कराह को सुन रावण के सलाहकारों ने उसे शिव स्तुति करने की सलाह दी जिससे कि उसका हाथ पर्वत से मुक्त हो सके।रावण के दर्द का प्रभाव देखिए कि अविलंब उसने सामवेद में उल्लेखित शिव के सभी स्तोत्रों का गान शुरू कर दिया। जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने दशानन को क्षमा दान देते हुए उसकी बांहों को मुक्त कर दिया।
इस प्रकार शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करने से आदि देव महादेव हमारे प्राणों की रक्षा करते हैं और उनकी कृपा हम पर सदैव बनी रहती है।प्रेम से बोलिए “हर हर महादेव”।।
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