संदीप कुमार मिश्र: आस्था और विश्वास के देश भारत में अखंड सुहाग की कामना के लिए सदियों से सुहागिन महिलाएं ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखती आ रही हैं। इस खास दिन बरगद के वृक्ष की पूजा करके महिलाएं देवी सावित्री के त्याग, पति प्रेम एवं पति व्रत धर्म का स्मरण करती हैं।वट सावित्री व्रत स्त्रियों के लिए सौभाग्यवर्धक, पापहारक, दुःख प्रणाशक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है।खासतौर पर सौभाग्य और समृद्धि के इस व्रत में वट वृक्ष का विशेष महत्व होता है। इस पेड़ की बहुत सारी शाखाएं नीचे की तरफ लटकी हुई होती हैं, जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता हैऔर पूजा की जाती है।
कहते है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु एवं डालियों में भोलेनाथ का निवास होता है। इसलिए वट वृक्ष की पूजा से कहा जाता है कि सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं। अग्नि पुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है, इसलिए संतान प्राप्ति की कामना करने वाली महिलाएं भी इस व्रत को करती हैं।कहते हैं कि वट वृक्ष की छांव में ही देवी सावित्री ने अपने पति को पुनः जीवित किया था। इसीलिए ही स्त्रियां अचल सुहाग की प्राप्ति के लिए इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं।
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