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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2018: भाव और भक्ति का त्यौहार श्रीकृष्ण जन्म - Shri Krishna Janmashtami

Friday, 24 August 2018 15:29

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संदीप कुमार मिश्र: हमारे हिन्दू धर्म में उपासकों के लिए सबसे अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी। यह तिथि भगवान श्रीकृष्ण की जन्मतिथि के रूप में मनाई जाती है। वर्ष 2018 में कृष्ण जन्माष्टमी का पावन त्योहार 2 सितंबर को मनाई जाएगी। इस विशेष अवसर पर श्रीकृष्ण भक्त,उपासक व्रत करते हैं और और प्रभु का ध्यान, किर्तन करते हैं। कुछ उपासक तो रात्रि जागरण भी निरंतर करते रहते हैं और श्रीकृष्ण नाम का संकीर्तन करते रहते है। कृष्ण जन्मभूमि मथुरा और वृन्दावन में जन्माष्टमी महोत्सव देखते ही बनती है।बृजधाम की रासलीला केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्वप्रसिद्ध है। रासलीला में एक तरफ जहां श्रीकृष्ण के जीवन के मुख्य वृतांतों को दर्शाया जाता है तो वहीं श्रीराधा रानी के प्रति उनके प्रेम का अभिनन्दन भी किया जाता है।कृष्णभूमि द्वारका में इस विशेष अवसर पर बड़ी धूमधाम और रौनक होती है। इस दिन यहाँ देश-विदेश से लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं और श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के रंग में रंग जाते हैं।

जानिए जन्माष्टमी व्रत और पूजा विधि                                    

जन्माष्टमी की पूर्व रात्रि हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सूर्यसोमयमकालसंधिभूतपवनदिक्‌पतिभूमिआकाशखचरअमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठें। इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें।अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए प्रसूति-गृह  का निर्माण करें।  तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।मूर्ति या प्रतिमा में बालकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी अथवा लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों। या ऐसी कृष्ण के जीवन के किसी भी अहम वृतांत का भाव हो।तत्पश्चात विधि-विधान से पूजन करें और प्रभु कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करें।

व्रत अगले दिन सूर्योदय के पश्चात ही तोड़ा जाना चाहिए। इसका ध्यान रखना चाहिए कि व्रत अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के पश्चात ही तोड़ा जाएं। किन्तु यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्यास्त से पहले समाप्त ना होतो किसी एक के समाप्त होने के पश्चात व्रत तोड़े। किन्तु यदि यह सूर्यास्त तक भी संभव ना होतो दिन में व्रत ना तोड़े और अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में से किसी भी एक के समाप्त होने की प्रतीक्षा करें या निशिता समय में व्रत तोड़े। ऐसी स्थिति में दो दिन तक व्रत न कर पाने में असमर्थसूर्योदय के पश्चात कभी भी व्रत तोड़ सकते हैं।

जय श्री कृष्ण

 

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