संदीप कुमार मिश्र : जगत जननी माँ दुर्गाजी के आठवें स्वरुप में माता महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है।मां महागौरी अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। कहते हैं कि मां दुर्गा के आठवें स्वरुप की उपासना से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं
माता महागौरी के संबंध में कहा जाता है कि भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी मां ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था। लेकिन देवी मां की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव नें इन्हें स्वीकार किया और मां के शरीर को गंगा-जल से स्नान करवाया जिसके बाद देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो गई तभी से इनका नाम गौरी पड़ा। महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं-
“सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।”
माँ महागौरी स्वरूप की पूजा विधि और विधान
नवरात्र के आठवें दिन यानि अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी अर्पित करती हैं।मां की पूजा में सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर या मंदिर में महागौरी की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करना चाहिए और फिर चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर महागौरी यंत्र की स्थापना करनी चाहिए। मां सौंदर्य प्रदान करने वाली देवी हैं। हाथ में श्वेत पुष्प लेकर मां का सच्चे मन से ध्यान करना चाहिए।
सप्तशती में अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ बताया गया है। कन्याओं की संख्या 9 होनी चाहिए नहीं तो 2 कन्याओं की पूजा भी कर सकते हैं। कन्याओं की आयु 2 साल से ऊपर और 10 साल से अधिक न हो इस बात का विशेष ध्यान रखें। भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए।
ध्यान
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥
स्तोत्र पाठ
सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
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