प्रभु श्री राम मानवीय रुप में मर्यादा के अनुठे चरित्र हैं।वो मर्यादापुरुषोत्तम हैं।वे जन जन को अतिप्रिय हैं।भारतीय जनमानस के महाराजाधिराज हैं।भाव और संस्कृति के श्रेय हैं श्रीराम।हमारे देश में हर वर्ष रामलीला का मंचन किया जाता है।पुरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण,देश के हर हिस्से में रामलीला का मंचन होता है।कही बृहद और विशाल रुप में तो कहीं लधु रुप में।दशकों से भारत के गांव गांव में रामलीला का मंचन होता आ रहा है।रामलीला के पात्र अपने अपने संवादों से जनमानस पर मर्यादीत छवी को संवारने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं।
संसार के किसी भी देश में एक मास की अवधि में एक साथ हजारों स्थलों पर ऐसे नाटक और अभिनय नहीं होते हैं। राम की लीला में लोकरंजन की ऊर्जा समाहीत है। दुनिया के अनेकानेक विद्वानों ने रामायण के विविध प्रकार के मंचन पर आश्चर्य व्यक्त किया है। रामलीला सिर्फ नाटक भर नहीं है। रामलीला के कथानक में सभी रसों का कोष है। इस कथानक में श्रीराम के प्रति प्रीति भावुकता सुसज्जित और सुस्थापित है। श्रीराम की पावन लीला में भावविह्वलता पहले से है, राम, लक्ष्मण, भरत, हनुमान या सीता बने पात्र उसे दोहराने का काम करते हैं। वे अभिनय की पराकाष्ठा को पार पानें में असफल भी होते हैं तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। रामकथा स्वयं ही सभी रसों की अविरल प्रवाहमयी धारा है।जिसे महान कवियों ने शब्दों में पिरोकर जनमानस के समक्ष रखा है। श्रीराम मर्यादा पुरूषोत्तम हैं। संसार के किसी महाकाव्य में, किसी नाटक में कोई भी ऐसा नायक नहीं जो इस प्रकार लोकप्रिय हुआ हो। श्रीराम जी का क्षमाभाव, मर्यादा, संस्कृति प्रेम, संगठन कौशल और पराक्रम विश्व में सबसे दुर्लभ है। उसे जीवन में न सही नाटक जैसे स्टेज पर पुनर्जीवित करना, रस पाना, रस पीना और रस पिलाना ही रामलीला है। राम हमारी चेतना के ऐसे किनारे हैं जहां “अखिल लोकदायक विश्राम” की व्याकुलता समाप्त होती है। राम आनंदरस, करूणरस और जीवन के सभी आयामों में मधुछन्दस् चेतना हैं। रामलीला उसी तत्व और लोकमंगल की कामना है जो प्रत्येक जनमानस करता है।
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