धर्म डेस्क: आदिदेव महादेव भगवान शिव ही सत्य हैं और जो सत्य है वही सुंदर है।महादेव की साधना आराधना का पवित्र पर्व महाशिवरात्रि। जो सनातन हिन्दू धर्म में आस्था और विश्वास का महापर्व है। दक्षिण भारतीय पंचांग (अमावस्यान्त पंचांग) के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। वहीं उत्तर भारतीय पंचांग (पूर्णिमान्त पंचांग) के मुताबिक़ फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का आयोजन होता है। पूर्णिमान्त व अमावस्यान्त दोनों ही पंचांगों के अनुसार महाशिवरात्रि एक ही दिन पड़ती है, इसलिए अंग्रेज़ी कैलेंडर के हिसाब से पर्व की तारीख़ वही रहती है। इस दिन शिव-भक्त मंदिरों में शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाकर पूजा, व्रत तथा रात्रि-जागरण करते हैं।आईए जानते नव वर्ष 2021 में कब है महाशिवरात्रि और क्या है पूजा विधि-विधान और क्या शुभ मुहूर्त-
महाशिवरात्रि 2021 की तारीख व मुहूर्त
महाशिवरात्रि 11 मार्च 2021
निशिथ काल पूजा- 24:06 से 24:55
पारण का समय- 06:38 से 15:01 (12 मार्च)
चतुर्दशी तिथि आरंभ- 14:39 (11 मार्च)
चतुर्दशी तिथि समाप्त- 15:01 (12 मार्च)
महाशिवरात्रि व्रत का शास्त्रोक्त नियम
महाशिवरात्रि व्रत कब मनाया जाए, इसके लिए शास्त्रों के अनुसार निम्न नियम तय किए गए हैं -
1. चतुर्दशी पहले ही दिन निशीथव्यापिनी हो, तो उसी दिन महाशिवरात्रि मनाते हैं। रात्रि का आठवाँ मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है। सरल शब्दों में कहें तो जब चतुर्दशी तिथि शुरू हो और रात का आठवाँ मुहूर्त चतुर्दशी तिथि में ही पड़ रहा हो, तो उसी दिन शिवरात्रि मनानी चाहिए।
2. चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथकाल के पहले हिस्से को छुए और पहले दिन पूरे निशीथ को व्याप्त करे, तो पहले दिन ही महाशिवरात्रि का आयोजन किया जाता है।
3. उपर्युक्त दो स्थितियों को छोड़कर बाक़ी हर स्थिति में व्रत अगले दिन ही किया जाता है।
4.महाशिवरात्रि के दिन व्रत का विधान हमारे सनातन धर्म में बताया गया है। शिवरात्रि व्रत का पालन करने के लिए भक्तों को दिन में केवल एक समय भोजन करना चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन, भक्तों को पूरे दिन एक कठोर उपवास रखने का संकल्प लेना चाहिए।
शिवरात्रि व्रत की पूजा-विधि
1. मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाना चाहिए। अगर आस-पास कोई शिव मंदिर नहीं है, तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया जाना चाहिए।
2. शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप इस दिन करना चाहिए। साथ ही महाशिवरात्री के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है।
3. शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन ‘निशीथ काल’ में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है। हालाँकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं।
ज्योतिष के दृष्टिकोण से शिवरात्रि पर्व
चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ अर्थात स्वयं शिव ही हैं। इसलिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में इस तिथि को अत्यंत शुभ बताया गया है। गणित ज्योतिष के आंकलन के हिसाब से महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण हो चुके होते हैं और ऋतु-परिवर्तन भी चल रहा होता है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमज़ोर स्थिति में आ जाते हैं। चन्द्रमा को शिव जी ने मस्तक पर धारण किया हुआ है। अतः शिवजी के पूजन से व्यक्ति का चंद्र सबल होता है, जो मन का कारक है। दूसरे शब्दों में कहें तो शिव की आराधना इच्छा-शक्ति को मज़बूत करती है और अन्तःकरण में अदम्य साहस व दृढ़ता का संचार करती है।
महाशिवरात्रि की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं व बधाई