भगवान भोलेनाथ के त्रिशुल पर बसी विश्व की सबसे प्राचीन नगरी काशी यानी वाराणसी।जहां पर स्थित है श्री संकटमोचन मंदिर। इस मंदिर के चारों ओर एक छोटा सा वन क्षेत्र है। यहां का वातावरण एकांत, शांत एवं उपासकों के लिए दिव्य साधना स्थली से कम नहीं है। मंदिर के प्रांगण में श्री हनुमानजी महाराज की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। श्री संकटमोचन हनुमान मंदिर के पास में ही भगवान श्रीनृसिंह का मंदिर भी स्थापित है। ऐसी मान्यता है कि हनुमानजी की यह मूर्ति गोस्वामी तुलसीदासजी के तप एवं पुण्य से प्रकट हुई स्वयंभू मूर्ति है। इस मूर्ति में हनुमानजी दाएं हाथ से भक्तों को अभयदान कर रहे हैं एवं बायां हाथ उनके ह्रदय पर स्थित है।इस मंदिर में प्रत्येक कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमानजी की सूर्योदय के समय विशेष आरती एवं पूजन समारोह संपन्न होता है। उसी प्रकार चैत्र पूर्णिमा के दिन यहां "श्री हनुमान जयंती" महोत्सव का भव्य आयोजन होता है। इस अवसर पर श्रीहनुमानजी की बैठक की झांकी होती है और चार दिन तक रामायण सम्मेलन महोत्सव एवं संगीत सम्मेलन होता है।जहां देश के कोने कोने से कलाकार आकर भाव राग ताल से आयोजन को सफल बनाते है।
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