राजस्थान के दौसा जिले के पास दो पहाडिय़ों के बीच बसा हुआ है मेहंदीपुर नामक स्थान।जिसके संबंध में कहा जाता है कि दो पहाडिय़ों के बीच की घाटी में स्थित होने के कारण इसे घाटा मेहंदीपुर भी कहते हैं।ऐसी मान्यता है कि यह मंदिर करीब 1 हजार साल पुराना है। यहां पर एक बहुत विशाल चट्टान में हनुमान जी की आकृति स्वयं ही उभर आई थी। जिसे श्री हनुमान जी का स्वरूप माना जाता है।मंदिर में स्थित बालाजी के चरणों में छोटी सी कुण्डी है, जिसका जल कभी समाप्त नहीं होता। यह मंदिर तथा यहाँ के हनुमान जी का विग्रह काफी शक्तिशाली एवं चमत्कारिक माना जाता है। कहा जाता है कि मुगल साम्राज्य में इस मंदिर को तोडऩे के अनेक प्रयास हुए लेकिन चमत्कारी रूप से इस मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ।इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां ऊपरी बाधाओं के निवारण के लिए आने वालों श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर की सीमा में प्रवेश करते ही ऊपरी हवा से पीडि़त व्यक्ति स्वयं ही झूमने लगते हैं और लोहे की सांकलों से स्वयं को ही मारने लगते हैं। मार से तंग आकर भूत प्रेतादि स्वत: ही बालाजी के चरणों में आत्मसमर्पण कर देते हैं और भाग जाते हैं।मनोकामना पूर्ति के लिए बारहो महीने श्रद्धालुओं का यहां आना जाना लगा ही रहता है।
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