धर्म डेस्क/लट्ठमार होली 2021- बृज की होली के बारे में एक प्रसिद्ध कहावत है ' सब जग होरी, या बृज होरी ' जो बिल्कुल सटीक बैठती है क्योंकि जहां देश भर में होली अधिकतम 3 दिन तक तक मनाई जाती है वहीं बृज क्षेत्र में इस त्यौहार के रंग महीने भर तक उड़ते हैं। बृजधाम श्रीकृष्ण और राधारानी की लीला स्थली है इसलिए श्रीधाम वृंदावन की फिजाओं में सब पर महीनों तक होली का रंग चढ़ा होता हॉ और देस विदेस से आए लोग इसमें शामिल होने आते है।
ऐसा कहा जाता है कि श्रीकृष्ण राधा जी और गोपियों के साथ होली खेलने के लिए अपने ग्वाल बालों के साथ नंदगांव से बरसाना आया करते थे और गोपियां उन्हें लाठियों से मारा करती थीं। तभी से यह एक रस्म बन गई। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए आज भी हुरियार नंदगांव से बरसाना होली खेलने जाते हैं और गोपियां उन्हें लाठी मारती हैं, इससे यह होली लट्ठमार के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
अद्भूत प्रेम और रंग के इस त्योहार श्रीराधारानी और भगवान कृष्ण के प्रेम के रस से सराबोर होता है। बरसाना की लट्ठमार होली दुनियाभर में प्रसिद्ध है। ये त्योहार राधा कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है। साथ ही ब्रज की होली में गीत और गारी गायन का विशेष महत्व है।
वहीं होली के इस त्योहार में पारंपरिक अंदाज में ठाकुरजी के सामने ब्रजवासी-सेवायत ब्रजभाषा में होली पदों का गायन करते हैं। होली मनाने के लिए ब्रज में देश-विदेशी से भक्तों का ताता लगता है। इस बीच कान्हा के गांव गोकुल में छड़ीमार होली खेलकर ये त्योहार मनाया जाता है। होली मनाते समय ज्यादा चोट न लग जाए इसलिए लाठी की बजाए छड़ी का इस्तेमाल किया जाता है।
विशेष कार्यक्रम की बात करें तो ब्रज क्षेत्र में लड्डू होली,बरसाने में लट्ठमार होली, नन्दगांव व रावल गांव में लट्ठमार होली, श्रीकृष्ण जन्मभूमि और बांके बिहारी मंदिर में सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ होली और गोकुल में छड़ीमार होली विशेष पारंपरिक रुप से खेली जाती है।
लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन बरसाने में मनाई जाती है। नवमी के दिन यहां का नजारा देखने लायक होता है। होली में लोग केवल डंडों से ही नहीं बल्कि रंगो और फूलों से भी होली खेलते हैं। आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं व बधाई।