Dharm/Desk/tbc: जय संतोषी माता।माँ संतोषी की पूजा,व्रत और आराधना जीवन में सुख और आनंद प्रदान करने वाला वाला है।जो भू भक्त,साधक नाता का व्त रहता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।आज आपको बताते हैं कि कैसे संतोषी माता का व्रत रखना चाहिए,क्या है व्रत के नियम और विधि।
संतोषी माता का व्रत किसी भी शुक्रवार से शुरू किया जा सकता है लेकिन व्रत प्रारम्भ करने का सबसे अच्छा समय किसी भी महीने के कृष्ण पक्ष के शुक्रवार से माना जाता है।कहा जाता है कि कृष्ण पक्ष से व्रत की शुरुआत करना ज्यादा फलदायी होता है। संतोषी व्रत प्रारम्भ करने के लिए लगातार 16 शुक्रवार तक व्रत करने का संकल्प करें और 16 शुक्रवार व्रत करने के बाद व्रत का उद्यापन करें। मान्यता है कि माता संतोषी का जो भी भक्त पूरे विधि विधान से व्रत रखता है और उपासना करता है तो उसकी सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं
जाने कैसे करें व्रत और पूजन
-पूजा करने से पूर्व जल से भरे पात्र के ऊपर एक कटोरी में गुड़ और भुने हुए चने रखें।
-दीपक जलाएं और व्रत कथा कहते समय हाथों में गुड़ और भुने हुए चने रखें।
-दीपक के आगे या जल के पात्र को सामने रख कर कथा प्रारंभ करें तथा कथा पूरी होने पर आरती करें और प्रसाद का भोग लगाएं।
-संतोषी माता के अनुष्ठानों के दौरान, पहली प्रार्थना संतोषी माता के पिता भगवान गणेश और माता रिद्धि-सिद्धि के लिए करनी चाहिए।
-संतोषी माता आपकी सभी इच्छाओं को पूरा करती हैं और व्यवसाय में सफलता लाती हैं।
-देवी से संतान, व्यापार में लाभ, आमदनी में वृद्धि, भावनाओं और दुखों को दूर करने की प्रार्थना करें।
-इस दिन पूरे दिन भोजन ग्रहण न करें।
-16 शुक्रवार तक नियम पूर्वक व्रत करें और शुक्रवार को व्रत के दौरान फलाहार ग्रहण करें।
-भोजन में घर में खट्टी खाद्य सामग्रियों का उपभोग न करें और परिवार जनों को भी खट्टे भोजन से दूर रहना चाहिए।
संतोषी माता के व्रत का महत्त्व
शुक्रवार का व्रत विभिन्न कारणों से महत्वपूर्ण माना जाता है। शुक्रवार के उपवास के स्पष्ट कारणों में से एक है कि उस दिन संतोषी माता का जन्म हुआ था। कुछ लोग संतोषी माता को शक्ति या शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजते हैं जो उनके सभी दुख और चिंताओं को दूर कर सकती हैं।इसी तरह, अन्य लोग अपने जीवन से बाधाओं को दूर करने, अपने बच्चों को स्वस्थ रखने और एक खुशहाल पारिवारिक जीवन जीने के लिए शुक्रवार का उपवास करते हैं। शुक्रवार को उपवास करने और इसी दिन संतोषी मां की पूजा करने की अवधारणा के पीछे एक सच्ची कहानी है। किंवदंतियों के अनुसार, भगवान गणेश के पुत्र, शुभ और लाभ, रक्षा बंधन के रिवाज के महत्व को समझना चाहते थे और वे एक छोटी बहन की इच्छा रखते थे। इस प्रकार, भगवान गणेश ने संतोषी माता को बनाया। माता संतोषी ने अपने बड़े भाइयों की इच्छाओं को पूरा किया, इसलिए उनका नाम संतोषी रखा गया।
इस प्रकार से संतोषी माता का व्रत रहने से साधक को सबकुछ प्राप्त हो जाता है और उसका जीवन सुखमय बन जाता है।जय संतोषी माता।