Dharm Desk/tbc/Janmashtami 2021 Special: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार 30 अगस्त 2021, यानी सोमवार को भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाएगा। इस दिन को योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन व्रत रखकर भगवान श्रीकृष्ण की उपासना का विधान है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों पर कभी कोई कष्ट नहीं आने देते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण को 16 कलाओं का स्वामी माना गया है। चलिए जानते हैं कौन सी हैं वो 16 कलाएं -
श्रीधन संपदा- यह पहली कला है और धन संपदा का अर्थ यहां सिर्फ धन से ही नहीं है। धनी उसे कहा गया है कि जो कि मन, वचन, और कर्म से धनी हो। श्रीकृष्ण न सिर्फ भौतिक रूप से बल्कि आत्मिक रूप से भी धनवान थे।
भू संपदा- दूसरी कला के रुप में भूं-अचल संपत्ति को स्थान दिया गया है।इसका अर्थ है कि व्यक्ति के पास एक बड़ा भूभाग हो, जिस पर वह शासन करने की क्षमता रखता हो। भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका नगरी को बसाया था।
कीर्ति- तीसरी कला के रूप में कीर्ति-यश प्रसिद्धि । इसका अर्थ है कि जिसके मान-सम्मान और यश की कीर्ति से चारों दिशाओं में गूंजती हो जिसके प्रति लोग श्रद्धा भाव रखते हों।
वाणी सम्मोहन- चौथी कला इला-वाणी की सम्मोहकता है।भगवान श्री कृष्ण में यह कला भी मौजद है, पुराणों में भगवान श्रीकृष्ण के बारे में उल्लेख मिलता है कि श्री कृष्ण की वाणी सुनकर क्रोधी व्यक्ति भी अपना सुध-बुध खोकर शांत हो जाता था।
लीला- पांचवीं कला का नाम है लीला, यह आनंद भी है।यह कला जिसमें होती उस व्यक्ति का दर्शन कर आनंद का अनुभव होता है। इनकी लीला कथाओं को सुनकर भौतिकवादी व्यक्ति भी विरक्त होने लगता है।
कांति- इसे सौदर्य और आभा भी कहा जाता है. इसका अर्थ होता है कि वह व्यक्ति जिसके रूप को देखकर मन स्वत: ही आकर्षित होकर प्रसन्न हो जाता है. कृष्ण की इस कला के कारण पूरा व्रज मंडल कृष्ण को मोहिनी छवि को देखकर हर्षित होता था.
विद्या- सातवीं कला का नाम विद्या है। इससे परिपूर्ण व्यक्ति सफलता में आगे रहता है।गवान श्री कृष्ण में यह कला भी थी, वह कृष्ण वेद, वेदांग के साथ ही युद्घ और संगीत-कला में पारंगत थे। इसके साथ ही राजनीति और कूटनीति में भी वे माहिर थे।
विमला- वह व्यक्ति जिसके मन में छल-कपट नहीं हो। जो सभी व्यक्तियों के प्रति एक सा व्यवहार करे जिसके दिल में कोई द्वेष न हो।
उत्कर्षिणि- इसका अर्थ प्रेरणा और नियोजन है। यानि वह व्यक्ति जिसमें दूसरे को प्रेरित करने की क्षमता हो। जो लोगों को अपनी मंजिल पाने के लिए प्रेरित कर सके।
ज्ञान- ये दसवीं कला है. इस अर्थ नीर क्षीर विवेक सा ज्ञान रखने वाला व्यक्ति जो अपने ज्ञान से न्यायोचित फैसले लेता हो। भगवान श्री कृष्ण ने जीवन में कई बार विवेक का परिचय देते हुए समाज को नई दिशा प्रदान की।
क्रिया- भगवान श्री कृष्ण इस कला में भी निपुण थे। जिनकी इच्छा मात्र से दुनिया का हर काम हो सकता है वह कृष्ण सामान्य मनुष्य की तरह कर्म करते हैं और लोगों को कर्म की प्रेरणा देते हैं।
योग- ऐसा व्यक्ति जिसने अपने मन को आत्मा में लीन कर लिया है। भगवान श्रीकृष्ण में यह गुण समाहित था।
विनय- इसका अर्थ है विनयशीलता यानि जिसे अहंकार का भाव छूता भी न हो। जिसके पास चाहे कितना ही ज्ञान हो, चाहे वह कितना भी धनवान हो, बलवान हो मगर अहंकार दूर दूर तक न हो।
सत्य- श्री कृष्ण कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं रखते और धर्म की रक्षा के लिए सत्य को परिभाषित करना भी जानते थे, यह कला सिर्फ श्री कृष्ण में है।
इसना- यानि आधिपत्य. इस कला का अर्थ है कि व्यक्ति में उस गुण का मौजूद होना जिससे वह लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित कर पाता है। जरूरत पड़ने पर लोगों को अपने प्रभाव को एहसास दिलाता है।
अनुग्रह- यानि उपकार। इसका अर्थ है कि बिना प्रत्युकार की भावना से लोगों का उपकार करना। भगवान श्रीकृष्ण इस कला का बाखूबी उपयोग करते थे.