Dharm Desk/tbc: आषाढ़ के पावन पवित्र मास का सनातन हिन्दू धर्म में विशेष रूप से महत्व बताया गया है । आषाढ़ माह को योग,ध्यान,स्वाध्याय,सत्संग के लिए सर्वोत्तम माना गया है। आषाढ़ मास में भगवान शिव और भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा को अत्यंत फलदायी माना गया है। आषाढ़ माह में भगवान भास्कर सूर्यदेव की पूजा का भी विधान है। आषाढ़ माह को मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला माह कहा जाता है। विशेष रुप से इस माह में दान पुण्य का महत्व बढ़ जाता है ।
आषाढ़ माह में प्रत्येक रविवार को सूर्यदेव की पूजा करने से सकारात्मक शक्ति प्राप्त होती है। इस पावन माह में सूर्यदेव को जल अर्पित करने से बल, बुद्धि, ज्ञान, वैभव और पराक्रम की प्राप्ति होती है। इस माह में प्रत्येक रविवार को भोजन में नमक का उपयोग नहीं करना चाहिए। श्रीहरि भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा आषाढ़ माह में की जाती है। इस माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा निकाली जाती है। इस माह पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा का पर्व मनाया जाता हैं।
इस माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी का त्योहार मनाया जाता है। इस माह अमावस्या तिथि बहुत ही पवित्र तिथि मानी जाती है। आषाढ़ मास में चातुर्मास आरंभ होता है। चातुर्मास में शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। आषाढ़ माह में एक वक्त ही भोजन करना चाहिए। ब्राह्मणों को खड़ाऊं, छाता, नमक तथा आंवले का दान करना चाहिए। पितरों को श्राद्ध और तर्पण के लिए आषाढ़ अमावस्या को विशेष माना गया है।
इस माह आने वाली गुप्त नवरात्रि का विशेष महत्व है। भगवान शिव आषाढ़ शुक्ल एकादशी से जगत के पालनहार और संहारक दोनों ही भूमिका में होते हैं।क्योंकि श्रीहरि विश्राम को चले जाते हैं।