बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

 

बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

श्रावण का पवित्र माह चल रहा है।देश के समस्त शिवालयों में महादेव का जलाभिषेक हो रहा है। ऐसे में क्या आप जानते हैं द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा । चलिए जानते हैं पौराणिक कथा और जहां पर स्थित है बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग-

बाबा वैद्यनाथ धाम यह ज्योतिर्लिंग बिहार प्रांत के सन्थाल परगने में स्थित है। वर्तमान समय मे बाबा बैद्यनाथ झारखंड के देवघर में है। शास्त्र और लोक दोनों में उसकी बड़ी प्रसिद्धि है। बाबा वैद्यनाथ जी की स्थापना के विषय में यह कथा कही जाती है- एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय पर जाकर भगवान्‌ शिव जी का दर्शन प्राप्त करने के लिए बड़ी घोर तपस्या की उसने एक-एक करके अपने सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ाना शुरू किए, इस प्रकार उसने अपने नौ सिर वहां काटकर चढ़ा दिए।

जब वह अपना दसवाँ और अंतिम सिर काटकर चढ़ाने के लिए उद्यत हुआ तब भगवान्‌ शिव जी अतिप्रसन्न और संतुष्ट होकर उसके समक्ष प्रकट हो गए, शीश काटने को उद्यत रावण का हाथ पकड़कर उन्होंने उसे ऐसा करने से रोक दिया, उसके नौ सिर भी पहले की तरह जोड़ दिए और अत्यंत प्रसन्न होकर उससे वर मांगने को कहा, रावण ने वर के रूप में भगवान शिव से उस शिवलिंग को अपनी राजधानी लंका में ले जाने की अनुमति मांगी, भगवान्‌ शिव जी ने उसे यह वरदान तो दे दिया लेकिन एक शर्त भी उसके साथ लगा दी-

आदिदेव महादेव ने कहा- 

तुम ज्योर्तिलिंग ले जा सकते हो किंतु यदि रास्ते में इसे कहीं रख दोगे तो यह वहीं अचल हो जाएगा, तुम फिर इसे उठा न सकोगे,  रावण इस बात को स्वीकार कर उस शिवलिंग को उठाकर लंका के लिए चल पड़ा। चलते-चलते एक जगह मार्ग में तीव्र लघुशंका प्रतीत हुई तो श्री हरि नारायण के ग्वाल रूप को सौंप कर लघुशंका के लिये गए श्री हरि ने (ग्वाल रूप में) तीन बार राजा रावण को पुकारा और  न कोई उत्तर मिलने न ही वापस आने पर ज्योतिर्लिंग को वहीं स्थापित कर दिया और अंतर्ध्यान हो गए।

रावण जब लौटकर आया तब बहुत प्रयत्न करने के बाद भी उस ज्योर्तिलिंग को किसी प्रकार भी उठा न सका, अंत में थककर उस पवित्र शिवलिंग ज्योर्तिलिंग पर अपने अँगूठे का निशान बनाकर उसे वहीं छोड़कर लंका को लौट गया। तत्पश्चात ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने वहां आकर उस शिव लिंग ज्योर्तिलिंग का पूजन किया।

इस प्रकार वहां बाबा वैद्यनाथ जी की प्रतिष्ठा कर वे लोग अपने-अपने धाम को लौट गए। यही ज्योतिर्लिंग 'श्रीवैद्यनाथ' के नाम से जाना जाता है। 

।।श्रीवैद्यनाथ धाम की जय।।

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