ब्रह्मर्षि श्री किरीट भाई जी का कहना है कि पूजन व सत्संग जहां मन की स्थिरता हो वही होता है. मन की व्याग्रता में पूजा नही करे, क्योंकि ऐसी स्थिति में पूजन नही करने को भी भगवान नाराज नही होते एवं इसे अपराध नही मानते.
वह कहते हैं कि चिता तो एक बार ही जलाती है लेकिन चिन्ता तो बार-बार जलाती है. साधु अपने लिये नही दूसरों के लिये चिन्ता करते हैं. हमें कलयुग को बदनाम नही करना है, परिवार व समाज को सुधारने के प्रपंच में नही पड़े. मुनिश्री के अनुसार सुधारना है तो पहले स्वयं को सुधार लें.