संदीप कुमार मिश्र : एक योगी...एक तपस्वी...एक समाज सेवी...हिन्दू जीवन पद्धति का प्रबल समर्थक... एक योगी...पवित्र पावन पीठ गोरक्षनाथ मंदिर के महंत...देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री...योगी आदित्यनाथ...।
योगी आदित्यनाथ जी का उदय उस सूर्योदय की तरह था जिसकी लालिमा से संपूर्ण प्रदेश ही नहीं भारतवर्ष के साथ ही सनातन धर्म और संस्कृति का विकास और उत्थान निरंतर हो रहा है...दरअसल एक समय था जब जेहाद, धर्मान्तरण, नक्सली व माओवादी हिंसा, भ्रष्टाचार तथा अपराध की अराजकता और धर्म की रक्षा के लिए नाथपंथ के विश्व प्रसिद्ध मठ श्री गोरक्षनाथ मंदिर गोरखपुर के पावन परिसर में शिव गोरक्ष महायोगी गोरखनाथ जी के अनुग्रह स्वरूप माघ शुक्ल 5 संवत् 2050 तदनुसार 15 फरवरी सन् 1994 की शुभ तिथि पर गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज के उत्तराधिकारी के रुप में योगी आदित्यनाथ जी महाराज का दीक्षाभिषेक सम्पन्न हुआ।
महादेव की पावन देव-भूमि उत्तराखण्ड में 5 जून सन् 1972 को जन्म लिए योगी जी सनातन हिन्दू धर्म की विकृतियों को दूर करने के लिए विज्ञान वर्ग से स्नातक करने के बाद 22 वर्ष की अवस्था में सांसारिक जीवन त्यागकर संन्यास ग्रहण किया।
सन्यासियों के प्रचलित मिथक को तोड़कर योगी जी ने शिव की प्रेरणा से जन सामान्य को जोड़ने का कार्य प्रारंभ किया और चल पड़े समाज के हर तबके को न्याय और अधिकार दिलाने के लिए...गांव-गांव...गली-गली...क्योंकि बुनियादी जरुरतों की आवश्यकता हर किसी को है।
एक बृहद रुप में जनजागरण का अभियान चलाकर सहभोज के माध्यम से योगी जी ने छुआछूत और अस्पृश्यता की भेदभावकारी रूढ़ियों पर जमकर प्रहार किया।साथ ही गोरक्षा के लिए आम जन को जागरूक करके गोवंश के संरक्षण एवं सम्वर्धन का कार्य निरंतर कर रहे हैं बहुआयामी प्रतिभा के धनी योगी जी, धर्म के साथ-साथ सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से राष्ट्र की निरंतर सेवा कर रहे हैं।
नियती ही है कि योगी जी आगे बढ़ते गए और कारवां बनता गया...और पूज्य गुरुदेव के आदेश और गोरखपुर की सम्मानित जनता की मांग पर साल 1998 में गोरखपुर से लोकसभा चुनाव लड़ा और मात्र 26 वर्ष की आयु में भारतीय संसद के सबसे युवा सांसद बने और 1998 से लेकर 2017 तक निरंतर ये क्रम जारी रहा और अब उत्तर प्रदेश को कुशासन और भ्रस्टाचार से निजात दिलाने के लिए यूपी की कमान संभाली और सीएम के तौर पर दमदारी से कार्य कर रहे हैं।
व्यवहार कुशलता, दृढ़ता, कर्मठता और हिन्दुत्व के प्रति अगाध प्रेम मनसा, वाचा कर्मणा सभी रुप में योगी जी समाज के अंतिम व्यक्ति की सुविधा का ख्याल रखते हैं।
सत्य तो यही है कि योगी जी का जीवन एक खुली किताब हैं,जिसे पढ़ना बहुत आसान है।योगी जी का जीवन और समय पीड़ित, गरीब, असहाय के लिए समर्पित है।क्योंकि योगी जी का कहना है कि है सत्ता सेवा की वस्तु है ना की उपभोग की..।
इस मायावी संसार में आसान नहीं होता वैभवपूर्ण ऐश्वर्य का त्यागकर कंटकाकीर्ण पगडंडियों पर चलना।लेकिन योगी जी के जीवन का उद्देश्य है - ‘न त्वं कामये राज्यं, न स्वर्ग ना पुनर्भवम्। कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामर्तिनाशनम्।। अर्थात् ‘‘हे प्रभो! मैं लोक जीवन में राजपाट पाने की कामना नहीं करता हूँ। मैं लोकोत्तर जीवन में स्वर्ग और मोक्ष पाने की भी कामना नहीं करता। मैं अपने लिये इन तमाम सुखों के बदले केवल प्राणिमात्र के कष्टों का निवारण ही चाहता हूँ।’’
‘जाति-पाँति पूछे नहिं कोई-हरि को भजै सो हरि का होई’ गोरक्षपीठ का मंत्र रहा है।परम योगी शिवअवतारी गुरु गोरक्षनाथ ने भारत की जातिवादी-रूढ़िवादिता के विरुद्ध जो उद्घोष किया था वह अनवरत जारी है। जिसे गोरक्षपीठाधीश्वर परमपूज्य महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज के पद-चिह्नों पर चलते हुए पूज्य योगी आदित्यनाथ जी महाराज आगे बढ़ा रहे हैं।
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