सत्य नारायण व्रत कथा के अनुसार साधू व्यापारी ने
सत्यनारायण भगवान की पूजा का संकल्प लिया. परिवार में कलावती
नामक कन्या का भी जन्म हुआ. पुत्री का विवाह भी हुआ. समय समय पर संकल्प
लेने के बाद भी उसने संकल्प पूरा नही किया. जिससे रुष्ट होकर भगवान ने
दैवयोग से साधू व्यापारी और उसके दमाद पर चोरी का इल्जाम लगवाया. इतने में तसल्ली नही हुई तो उनके घर चोरी
भी करवाई. कलावती और लीलावती के भगवान का प्रसाद न लेने पर, रुष्ट होकर
देव योग से उनके पतियों की नाव ही पलटा दी. दुबारा प्रसाद ग्रहण करने पर
उनके पति सकुशल लौट आए. क्या भगवान अपनी शक्ति दिखा कर अपनी पूजा करवाना
चाहते थे?
दैत्यराज हिरण्याकश्यप खुद को भगवान कहलवाना चाहता था. अपनी
शक्ति के बल के द्वारा लोगो से अपनी पूजा करवानी चाही. तो भगवान ने उसका
वध कर दिया.
क्या भगवान खुद को ही सर्वशक्तिमान बनाए रखना चाहते थे? क्या भगावान
में भी
इंसानों की तरह ईर्षा, द्वेश, क्रोध भरा रहता है? क्या
भगवान पूजा पाठ के द्वारा ही मनुष्य के भाग्य का निर्धारण करते हैं? कर्मो के
द्वारा नही?
क्या फ़र्क है हिरण्याकश्यप और भगवान में ?