संदीप कुमार मिश्र- भजन-किर्तन भक्ति का सर्वोत्तम और सुगम मार्ग है,जिससे परम पिता परमात्मा की भक्ति में मन सहज ही रम जाता है और मनुष्य को होती है आनंद की एक ऐसी अनुभुति जिससे मन मस्तिष्क प्रफुल्लित हो उठता है।हिन्दू धर्म शास्त्रों में भक्ति के अनेकानेक मार्ग बताए गए हैं।जिसमें कथा,सत्संग,भजन,किर्तन प्रमुख हैं।प्रभु का नाम संकिर्तन करने मनुष्य भवसागर से पार पा हो जाता है।
आस्था और भक्ति के परिपूर्ण देश है भारत।ऐसे में प्रश्न उठता है कि भक्ति वास्तव में है क्या ? इसका सबसे सरल उत्तर है भगवान की प्राप्ति का साधन है भक्ति। हमारे मन में जब भक्ति की भावना बहती है तो हमें ईश्वर की उदारता और उसकी शक्ति का एहसास होता है।मनुष्य को अपनी लघुता और उसकी महानता और विशालता का बोध होता है, जिससे कि मनुष्य अपनी इच्छाओं और इंद्रियों पर नियंत्रण कर पाता है और धरती पर अन्य समस्त जीवों के प्रति अपने मन में प्रेम भाव पैदा करता है।
हमारे धर्म शास्त्रों में भक्ति कैसे की जाती है,इस संबंध में भी बताया गया है।सनातन संस्कृति और हिन्दू धर्म शास्त्रों में अनेक प्रकार के ईश्वर भक्ति का मार्ग बताया गया है। प्रभु भक्ति के 9 सुगम रास्ते बताए गए हैं।भजन,किर्तन,श्रवण, स्मरण, पादसेवन, अर्चन व सत्संग,दास्य भाव आदि। श्री चैतन्य चरितामृत में भगवान के ही श्रीमुख से कहलाया गया है कि मैं पाँच तरह से बहुत प्रसन्न होता हूँ। ये हैं साधु संतों का संग , नाम संकीर्तन , भगवत्-श्रवण , तीर्थ वास और श्रद्धा के साथ श्रीमूर्ति सेवा। इस प्रकार से जो भी साधक भगवत भक्ति करता है उससे भगवान सहज ही प्रसन्न होकर मनवांछित फल देते हैं।
भक्ति के सभी मार्गों में श्रेष्ठ और सरल भक्ति मार्ग केवल नामामहिमा का है। कहने का भाव है कि निश्छल मन से, भाव से हरिनाम संकीर्तन किया जाए तो प्रभु की कृपा प्राप्त हो जाती है। यकिनन नाम संकीर्तन करना ही भगवत भक्ति प्राप्त करने का, प्रसन्न करने का सर्वोत्तम तरीका है , यही सर्वोत्तम भजन है।इस कलिकाल में,आज की भागदौड़ भरी जींदगी में भवसागर से पार जाने का सर्वोत्कृष्ट उपाय नाम संकिर्तन ही है।
कलियुग समजुग आन नहीं , जो नर कर विश्वास।
गाई राम गुण गन विमल , भव तर बिनहिं प्रयास।।
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